वैदिक काल या वैदिक सभ्यता
Vedik Age/Vedik Civilization
ऋग्वैदिक काल (1500-1000 ई.पू.)
इस काल का तिथि निर्धारण जितना विवादास्पद रहा है, उतना ही इस काल के लोगों के बारे में सटीक जानकारी प्राप्त करना। ऋग्वेद संहिता की रचना इस काल में हुई थी। अतः यह इस काल की जानकारी का एकमात्र साहित्यिक स्त्रोत है।
सिंधु सभ्यता के विपरीत वैदिक सभ्यता मूलतः ग्रामीण थी। आर्यों का आरंभिक जीवन पशु चारण पर आधारित था। कृषि उनके लिये गौण कार्य था।
1400 ई. पू. के बोगजकोई (एशिया माइनर ) के अभिलेख में ऋग्वैदिक काल के देवताओं – इंद्र, वरुण, मित्र तथा नासत्य का उल्लेख मिलता है । इससे अनुमान लगाया जाता है कि वैदिक आर्य ईरान से होकर भारत में आए होंगे।
ऋग्वेद की अनेक बातें ईरानी भाषा के प्राचीनतम ग्रंथ अवेस्ता से मिलती हैं।
भौगोलिक विस्तार
आर्यों की आरंभिक इतिहास की जानकारी का मुख्य स्त्रोत ऋग्वेद है।
ऋग्वेद में आर्य-निवास स्थल के लिये सप्त सैंधव क्षेत्र का उल्लेख मिलता है जिसका अर्थ है – सात नादियों का क्षेत्र । ये नदियाँ हैं- सिंधु, सरस्वती, शतुद्रि (सतलज), विपासा (व्यास), परुष्णी (रावी), वितस्ता (झेलम) और अस्किनी (चिनाब)।
ऋग्वेद से प्राप्त जानकारी के अनुसार, आर्यों का विस्तार अफगानिस्तान, पंजाब तथा पश्चिमी उत्तर प्रदेश तक था। सतलज से यमुना तक का क्षेत्र ब्रह्मर्त्त कहलाता था। मनुस्मृति में सरस्वती और दृशद्वती नदियों के बीच के प्रदेश को ब्रह्मवर्त पुकारा गया है। इसे ऋग्वैदिक सभ्यता का केंद्र माना जाता है।
गंगा व यमुना के दोआब क्षेत्र एवं उसके सीमावर्ती क्षेत्रों पर भी आर्यों ने कब्जा कर लिया, जिसे ब्रह्मर्षि देश कहा गया। कालांतर में संपूर्ण उत्तर भारत में आर्यों ने विस्तार कर लिया जिसे आर्यावर्त कहा जाता है।
वैदिक संहिताओं में 31 नदियों का उल्लेख मिलता है जिसमें से ऋग्वेद में 25 नदियों का उल्लेख किया गया है। किंतु ध्यान देने योग्य है कि ऋग्वेद के नदी सूक्त में केवल 21 नदियों का वर्णन किया गया है। इस काल की सर्वाधिक महत्तवपूर्ण नदी सिंधु को बताया गया है, जबकि सर्वाधिक पवित्र नदी सरस्वती को माना गया है, जिसे देवीतमा, मातेतमा एवं नदीतमा भी कहा गया है। ऋग्वेद में गंगा नदी का एक बार जबकि यमुना नदी का तीन बार नाम लिया गया है।
ऋग्वेद में हिमालय पर्वत एवं इसकी एक चोटी मुजवंत का भी उल्लेख किया गया है।
ऋग्वैदिक कालीन नदियाँ
प्राचीन नाम |
आधुनिक नाम |
परुष्णी | रावी |
शतुद्रि | सतलज |
अस्किनी | चेनाब/चिनाब |
वितस्ता | झेलम |
विपासा | व्यास |
गोमती | गोमल |
कुंभ/कंभा | काबुल |
सदानीरा | गंडक |
कुमु | कुर्रम |
सिंधु | इण्डस |
वैदिक काल में प्रयुक्त प्रमुख शब्द
आधुनिक नाम | प्राचीन नाम |
गाय | अघन्या (जिसका वध न हो) |
राजा | गोपा |
अतिथि | गोहंता/गोहन |
धनी व्यक्ति | गोमत |
युद्ध | गविष्ट,गेसु, गम्य |
पुत्री | दुहिता |
अनाज | धान्य |
मरुस्थल | धन्व |
उपजाऊ भूमि | उर्वरा |
पशुचारण योग्य भूमि | खिल्य |
हल से बनी नालियाँ | सीता |
वेद | ब्राह्मण | सूक्त | उपनिषद् | अरण्यक | अध्येता | उपवेद(प्रर्वतक) |
ऋग्वेद | कौषितकी, ऐतरेय | 1028मंत्र | कौषितकी, ऐतरेय | ऐतरेय,कौषितकी | होतृ | आयुर्वेद (प्रजापति) |
यजुर्वेद | तैत्तरीय, शतपथ | – | तैत्तरीय, कठी,श्वेताश्वर, ईश, वृहदाण्यक, मैत्रायणी | तैत्तरीय, वृहदारण्यक, शतपथ | अध्वर्यु | धनुर्वेद (विश्वामित्र) |
सामवेद | पंचविश (इसे ताण्ड्य ब्राह्मण भी कहते हैं।) | 1810 मंत्र | केन, छान्दोग्य | जैमनीय, छांदोग्य | उद्गाता | गंधर्व वेद (नारद) |
अथर्ववेद | गोपथ | 6000मंत्र | माण्डूक्य, प्रश्न, मुंडक | – | ब्रह्म | शिल्पवेद (विश्वकर्मा) |
सामाजिक स्थिति-
ऋग्वैदिक समाज पितृसत्तात्मक था। सामाजिक संगठन का आधार गोत्र या जन्ममूलक था। समाज की सबसे छोटी एवं आधारभूत इकाई परिवार या कुल था, जिसका मुखिया पिता होता था, जिसे कुलप कहा जाता था। पितृसत्तात्मक समाज के होते हुए भी महिलाओं को यथोचित सम्मान प्राप्त था।
ऋग्वेद के 10वें मंडल में वर्णित पुरुषसूक्त में चार वर्णों की उत्पत्ति का वर्णन मिलता है। इसके अनुसार विराट पुरुष के मुख से ब्राह्मण, क्षत्रिय भुजाओं से, वैश्य जाँघों से एवं शूद्र पैरों से उत्पन्न हुए हैं।
आजीवन अविवाहित रहने वाली कन्या अमाजू कहलाती थी।
राजनीतिक स्थिति
ऋग्वैदिक काल में राज्य का मूल आधार कुल (परिवार ) था। परिवार का मुखिया कुलप अथवा गृहपति कहलाता था। कुलों के आधार पर ग्राम का निर्माण होता था, जिसका प्रमुख ग्रामणी होता था। अनेक ग्राम मिलकर विश बनाते थे जिसका प्रधान विशपति होता था। विश से जन बनता था जो कबीलाई संगठन था इसका प्रधान प्रमुख जनपति होता था।
राजा→पुरोहित→विशपति→ग्रामणी→कुलप
इस प्रकार आर्यों की प्रशासनिक इकाइयाँ पाँच हिस्सों में बँटी थी।
1.कुल, 2. ग्राम, 3. विश, 4. जन और 5. राष्ट्र
प्राचीन नाम |
आधुनिक नाम |
उर्वरा | उपजाऊ भूमि |
लांगल, सीर | हल |
बृक | बैल |
करीष,शकृत | गोबर की खाद |
सीता | हल की बनी नालियाँ |
अवल | कूप (कुआँ) |
कीवाश | हलवाहा |
पर्जन्य | बादल |
उर्दर | अनाज मापने वाला पात्र |
तक्षण | बढ़ई |
भिषज | वैद्य |
कुसीद | ऋण लेने व बलि देने की प्रथा |
अनस | बैलगाड़ी |
धार्मिक स्थिति
ऋग्वेद में इंद्र को पुरंदर भी कहा गया है, ऋग्वेद के 250 सूक्त इंद्र को समर्पित हैं। इंद्र को आर्यों का युद्ध नेता तथा वर्षा , आंधी, तूफान का देवता माना गया है। इंद्र आर्यों के सर्वाधिक महत्वपूर्ण देवता थे।
आकाश के देवताः- सूर्य, धौस, वरुण, मित्र, पूषन, विष्णु, सविता, आदित्य, उषा, अश्विन आदि।
अंतरिक्ष के देवताः- इंद्र, रुद्र , मरुत, वायु , पर्जन्य , यम, प्रजापति आदि।
पृथ्वी के देवताः– अग्नि, सोम, पृथ्वी, बृहस्पति, सरस्वती आदि।
उत्तर वैदिक काल (1000-600 ई.पू.)
उत्तर वैदिक काल के अध्ययन के लिये सबसे महत्वपूर्ण स्त्रोतों में यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद, ब्राह्मण गंथ, उपनिषद एवं आरण्यक प्रमुख हैं। सामान्यतः लौह प्रौद्योगिकी युग की शुरुआत को उत्तर-वैदिक काल से जोड़ा जाता है इसके पर्याप्त साक्ष्य भी उपलब्ध है।
भौगोलिक विस्तार
इस काल की सभ्यता का केंद्र पंजाब से बढ़कर कुरुक्षेत्र (दिल्ली और गंगा-यमुना दोआब का उत्तरी भाग) तक आ गया था।
600 ई.पू. के आस पास (उत्तर वैदिक काल के अंतिम दौर में ) आर्य लोग कोशल, विदेह एवं अंग राज्य से परिचित थे।
शतपथ ब्राह्मण में उत्तर वैदिक कालीन रेवा (नर्मदा) और सदानीरा (गंडक) नदियों का उल्लेख मिलता है।
सामाजिक स्थिति
उत्तर वैदिक काल में सामाजिक व्यवस्था का आधार वर्णाश्रम व्यवस्था ही था।
इस समय समाज में चार वर्ण – ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र थे। ब्राह्मण के लिये ऐहि (आइये) , क्षत्रिय के लिये आगहि (आओ), वैश्य के लिये आद्रव (जल्दी आओ) तथा शूद्र के लिये आधाव (दौड़कर आओ) शब्द प्रयुक्त होते थे। ब्राह्मण,क्षत्रिय तथा वैश्य – इन तीनों को द्विज कहा जाता था। ये उपनयन संस्कार का अधिकारी नहीं था यहीं से शूद्रों को अपात्र या आधारहीन मानने की प्रक्रिया शुरु हुई।
इस काल में स्त्रियों की दशा में गिरावट आई। स्त्रियों के लिये उपनयन संस्कार प्रतिबंधित हो गया। ऐतरेय ब्राह्मण में पुत्री को कृपण कहा गया है।
शतपथ ब्राह्मण में कुछ विदुषी कन्याओं का उल्लेख मिलता है , ये हैं- गार्गी, गंधर्व, गृहीता, मैत्रेयी, वेदवती, काश्कृत्सनी आदि। स्त्रियों का पैतृक संपत्ति से अधिकार छिन गया तथा सभा में प्रवेश वर्जित हो गया।
सर्वप्रथम जाबालोपनिषद में चारों आश्रमों (ब्रह्मचर्य, गृहस्थ,वानप्रस्थ एवं संन्यास) का विवरण मिलता है। इस काल में आर्यों को चावल,नमक,मछली, हाथी तथा बाघ आदि का ज्ञान हो गया था।
सोलह संस्कार |
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1. गर्भाधान | 2. पुंसवन |
3. सीमान्तोन्नयन | 4. जातकर्म |
5. नामकरण | 6. निष्क्रमण |
7. अन्नप्राशन | 8. चूड़ाकर्म |
9. कर्ण बेध | 10.विद्यारंभ |
11.उपनयन | 12.वेदारंभ |
13.केशांत अथवा गोदान | 14.समावर्तन |
15.विवाह | 16.अन्त्येष्टि |
विवाह के आठ प्रकार
मनुस्मृति में विवाह के आठ प्रकारों का उल्लेख किया गया है, जिसमें प्रथम चार विवाह प्रशंसनीय तथा शेष चार निंदनीय माने जाते हैं-
प्रशंसनीय विवाह-
- ब्रह्मः कन्या के वयस्क होने पर उसके माता-पति द्वारा योग्य वर खोजकर, उससे अपनी कन्या का विवाह करना।
- दैवः यज्ञ करने वाले पुरोहित के साथ कन्या का विवाह।
- आर्षः कन्या के पिता द्वारा यज्ञ कार्य हेतु एक अथवा दो गाय के बदले में अपनी कन्या का विवाह करना।
- प्रजापत्यः पर स्वयं कन्या के पिता से कन्या मांगकर विवाह करता था।
निंदनीय विवाह
- आसुरः कन्या के पिता द्वारा धन के बदले में कन्या का विक्रय।
- गंधर्वः कन्या तथा पुरुष प्रेम अथवा कामुकता के वशीभूत होकर विवाह करते थे।
- पैशाचः सोई हुई अथवा विक्षिप्त कन्या के साथ सहवास कर विवाह करना।
- राक्षसः बलपूर्वक कन्या को छीनकर उससे विवाह करना।
राजा की वैवीय उत्पत्ति का सिद्धांत सर्वप्रथम ऐतरेय ब्राह्मण में मिलता है।
आरंभ में पांचाल एक कबीले का नाम था, परंतु बाद में वह प्रदेश का नाम हो गया। इस काल में पांचाल सर्वाधिक विकसित राज्य था।
सेनानी |
सेनापति |
सूत | राजा का सारथी |
ग्रामणी | गाँव का मुखिया |
भागदुध | कर संग्रहकर्ता |
संग्रहीता | कोषाध्याक्ष |
अक्षावाप | पासे के खेल में राजा के सहयोगी |
क्षता | प्रतिहारी |
गोविकर्तन | जंगल विभाग का प्रधान |
पालागल | विदूषक |
महिषी | मुख्य रानी |
पुरोहित | धार्मिक कृत्य करने वाला |
युवराज | राजकुमार |
ऐतरेय ब्राह्मण में वर्णित शासन व्यवस्था।
क्षेत्र | शासन | उपाधि |
पूर्व | साम्राज्य | सम्राट |
पश्चिम | स्वराज्य | स्वराट |
उत्तर | वैराज्य | विराट |
दक्षिण | भोज्य | भोज |
मध्य देश | राज्य | राजा |
धार्मिक स्थिति –
ऋग्वैदिक काल के दो सबसे बड़े देवता इंद्र एवं अग्नि अब उतने प्रमुख नहीं रहे। इंद्र के स्थान पर प्रजापति (सृजन के देवता ) को सर्वोच्च स्थान मिला। इस काल के दो अन्य प्रमुख देवता रुद्र (पशओं के देवता ) व विष्णु ( लोगों के पालक) माने जाते हैं। पूषन जो पहले पशुओं के देवता थे अब शूद्रों के देवता हो गए।
इस काल में दो महाकाव्य थे-महाभारत, जिसका पुराना नाम जयसंहिता था। यह विश्व का सबसे बड़ा महाकाव्य है तथा दूसरा महाकाव्य रामायण है।
वेद | पुरोहित |
ऋग्वेद | होतृ |
सामवेद | उद्गाता |
यजुर्वेद | अध्वर्यु |
अथर्ववेद | ब्रह्म |
प्रमुख दर्शन एवं उनके प्रवर्तक–
दर्शन | प्रवर्तक | दर्शन | प्रवर्तक |
चार्वाक | चार्वाक | पूर्व मीमांसा | जैमिनी |
योग | पतंजलि | उत्तर मीमांसा | बादरायण |
सांख्य | कपिल | वैशेषिक | कणाद (उलूक) |
न्याय | गौतम |