भारतीय संविधान

भारतीय संविधान निर्माण के आरंभिक चरण Indian Constitution

 

रेग्युलेटिंग एक्ट-1773

भारत में अंग्रेजों द्वारा पारित यह पहला एक्ट था।

इससे ईस्ट इंडिया कंपनी पर संसदीय नियंत्रण की शुरुआत हुई।

इस समय ब्रिटेन के प्रधानमंत्री लॉर्ड नॉर्थ थे।

इस अधिनियम का प्रमुख विशेषताएं थीं –

1.कलकत्‍ता में 1774 ई. में एक सर्वोच्च न्यायाल (सुप्रीम कोर्ट) की स्थापना। सर एलिजाह एम्फे को सुप्रीम कोर्ट का प्रथम मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया।

2.बंगाल में द्वैध शासन का अंत हुआ।

3.बंगाल के गवर्नर को पूरे अंग्रेजी क्षेत्रों का गवर्नर बन गया।

 

 पिट्स इंडिया एक्ट, 1784-

यह अधिनियम ब्रिटेन के प्रधानमंत्री पिट द यंगर के समय बना।

इसकी मुख्य विशेषताएं थीं-

1.बोर्ड ऑफ कंट्रोल की स्थापना की गई,

2.कंपनी का क्षेत्र ब्रिटिश शासित भारतीय प्रदेश कहलाने लगा।

3.बंबई तथा मद्रास के गवर्नर पूर्णरुपेण गवर्नर जनरल के अधीन आ गए।

 

चार्टर अधिनियम, 1786-

1.गवर्नर जनरल को मुख्य सेनापति की शक्तियां भी प्राप्त हो गईं।

2.विशेष परिस्थितियों में गवर्नर को अपनी परिषद के निर्णय को रद्द करने का अधिकार मिल गया।

 

चार्टर अधिनियम, 1793-

1.20 वर्षों के लिये कंपनी के व्यापारिक अधिकार बढ़ा दिए गए ।

2.नियंत्रण अधिकरण के सदस्यों को भारतीय कोष से वेतन देना निर्धारित किया गया।

 

चार्टर अधिनियम,1813-

1.कंपनी का भारतीय व्यापार का एकाधिकार समाप्त कर दिया गया, लेकिन दो क्षेत्रों में नहीं।

2.चीन के साथ व्यापार करने में ईसाई धर्म प्रचारकों को भारत में धर्म प्रचार की सुविधा मिल गई।

3.भारत में चाय एवं अफीम के क्षेत्रों को छोड़कर अन्य सभी क्षेत्रों में व्यापार करने का एकाधिकार कंपनी से छीन लिया गया।

 

 

चार्टर अधिनियम, 1833-

1.बंगाल का गवर्नर जनरल, भारत का गवर्नर जनरल बना।

2.भारत में दास-प्रथा को गैर-कानूनी घोषित कर दिया।

3.भारतीयों से भेदभाव नहीं करने का आश्वासन।

 

चार्टर अधिनियम, 1853-

1.भारतीय सिविल सेवा सभी के लिये खोल दी गई।

2.व्यवस्थापिकाओं को पहली बार अपने अनुसार नियम बनाने का अधिकार दिया गया।

3.विधान पार्षद बनाए गए।

 

भारत शासन अधिनियम, 1858-

1.ईस्ट इंडिया कंपनी से भारत का शासन ब्रिटेन की महारानी ने ले लिया।

2.बोर्ड ऑफ कंट्रोल तथा कोर्ट ऑफ डायरेक्टर्स को समाप्त कर दिया गया।

3.गवर्नर जनरल भारत में क्राउन के प्रतिनिधि के रुप में कार्य करने लगा तथा उसे वायसराय की उपाधि दी गई।

4.भारत सचिव (सेक्रेटरी ऑफ स्टेट) की नियुक्ति की गई।

 

 

भारतीय परिषद अधिनियम, 1861-

1.केंद्र, प्रेसीडेंसियों एवं प्रांतों में विधानपरिषदों की स्थापना।

2.परिषदों में गैर सरकारी सदस्यों की नियुक्ति।

3.विधायिका में भारतीयों को प्रतिनिधित्व देने की व्यवस्था।

भारतीय परिषद अधिनियम, 1892-

1.केंद्रीय एवं प्रांतीय परिषदों के आकार एवं कार्यक्षेत्र में वृद्धि।

2.परिषद के सदस्यों को प्रश्न पूछने का अधिकार।

 

 

 

भारतीय परिषद अधिनियम, 1909 / मार्ले-मिंटो सुधार

इसे मार्ले-मिंटो सुधार भी कहते हैं। इस अधिनियम की प्रमुख विशेषताएं इस प्रकार हैः-

1.सांप्रदायिक निर्वाचन की प्रक्रिया शुरु हुई।

2.गवर्नर जनरल की कार्यकारिणी में एक भारतीय सदस्य को नियुक्त किया गया। पहले भारतीय सत्येन्द्र सिन्हा थे।

3.केंद्रीय एवं प्रांतीय विधान परिषदों में निर्वाचित सदस्यों की संख्या में वृद्धि कर दी गई।

 

भारत शासन अधिनियम, 1919-

मोंटेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार भी कहते हैं। इस अधिनियम की प्रमुख विशेषताएं इस प्रकार हैं-

1.प्रांतों में द्वैध-शासन प्रणाली की शुरुआत की गई। इस प्रणाली के जन्मदाता सर लियोनिल कॉर्टिश थे।

2.केंद्रीय व्यवस्थापिका को दो भागों-विधान सभा एवं विधानपरिषद में विभाजित कर दिया गया।

3.आंग्ल-भारतीय, सिखों, यूरोपियों एवं ईसाइयों को अलग से प्रतिनिधित्व दिया गया।

4.पहली बार भारत में केंद्रीय विधानपरिषद की जगह द्विसदनीय विधानमंडल बनाया गया।

 

1935 का भारत परिषद अधिनियम-

सन् 1861 से भारत में सांविधानिक विकास की जो प्रक्रिया आरंभ हुआ थी, यह अधिनियम उसका अंतिम चरण था। इस अधिनियम द्वारा पहली बार भारत में संघीय व्यवस्था का उल्लेख किया गया। इस अधिनियम की मुख्य विशेषताएं इस प्रकार थीं-

1.एक अखिल भारतीय संघ की स्थापना की गई।

2.प्रांतों को स्वशासन का अधिकार दिया गया। प्रांतीय स्वायत्तता 1 अप्रैल, 1937 को अस्तित्व में आई,

3.प्रशासन के विषयों को दो भागों में विभक्त किया गया- आरक्षित एवं हस्तांतरित।

4.शासन के सभी विषयों को तीन भागों-केंद्रीय, प्रांतीय एवं समवर्ती सूचियों में बांट दिया गया।

5.एक संघीय न्यायालय एवं एक केंद्रीय बैंक की स्थापना की गई।

 

 

 संविधान का विकास-

वैसे देश में संविधान की मांग सबसे पहले 1895 ई. में तिलक ने अपने स्वराज के प्रस्ताव में की थी।

1928 ई. की नेहरु समिति कि रिपोर्ट में साइमन आयोग की इस चुनौती को स्वीकार किया गया कि भारतीय एक ऐसा संविधान बनाए जो सभी दलों को स्वीकार्य हो।

1934 ई. में कांग्रेस की कार्यकारिणी समिति ने श्वेत पत्र के माध्यम से यह घोषणा की कि वयस्क मताधिकार के आधार पर निर्वाचित संविधान सभा द्वारा एक संविधान निर्मित किया जाए। इसके बाद साम्यवादी नेता एम.एन.राय ने संविधान सभा के विचार का औपचारिक रुप से प्रतिपादन गिया।

1940 ई. में पं. जवाहरलाल नेहरु ने पुनः संविधान सभा की मांग उठाई।

1940ई. के अगस्त प्रस्ताव में तत्कालीन वायसराय लॉर्ड लिनलिथगो ने कहा कि युद्ध के बाद संविधान सभा का गठन किया जाएगा, जिसमें मुख्य रुप से भारतीय अपने अनुसार संविधान के निर्माण की रुपरेखा सुनिश्चित करेगें।

मार्च, 1942 ई. में क्रिप्स मिशन भारत आया। इसने कहा की भारत के संविधान की रचना भारत के लोगों द्वारा निर्वाचित संविधान सभा करेगी । एक संघ बनाया जाएगा तथा भारत को डोमिनियन का दर्जा और ब्रिटिश राष्ट्रकुल में बराबरी की भागीदारी दी जाएगी।

सर्वप्रथम संविधान सभा के गठन का आश्वासन अगस्त प्रस्ताव द्वारा दिया गया था।

कैबिनेट मिशन ने कहा कि देश का संविधान बनाने के लिए एक संविधान सभा का गठन किया जाएगा।

24 अगस्त, 1946 को अंतरिम राष्ट्रीय सरकार का गठन किया गया।

पं. जवाहरलाल नेहरु के नेतृत्व में उनके 11 सहयोगियों के साथ 2 सितंबर, 1946 को अंतरिम सरकार का गठन किया गया। इसमें मुस्लिम लीग के सदस्य शामिल नहीं हुए।

दिसंबर, 1946 की डॉ. राजेंद्र प्रसाद की अध्यक्षता में संविधान सभा का गठन कर दिया गया। मुस्लिम लीग ने इस संविधान सभा का विरोध किया और अलग पाकिस्तान की मांग की।

9 दिसंबर, 1946 को संविधान सभा का प्रथम अधिवेशन हुआ।

राजनीतिक गतिरोध को दूर करने के लिए ब्रिटिश प्रधानमंत्री एटली ने 20 फरवरी, 1947 को एक ऐतिहासिक घोषणा करते हुए कहा कि जून, 1948 तक राजसत्ता भारत के लोगों को सौंप दी जाएगी।

3 जून 1947 को भारत के तत्कालीन वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन की अध्यक्षता में बनाई गई एक योजना प्रस्तुत की गई, जिसे माउंटबेटन योजना के नाम से जाना जाता है।

माउंटबेटन की योजना पर सहमति के बाद ब्रिटिश संसद द्वारा भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम, 1947 पारित किया गया।

18 जुलाई , 1947 को इस अधिनियम को ब्रिटेन की महारानी ने स्वीकृति प्रदान कर दी।

15 अगस्त, 1947 से दो स्वतंत्र डोमिनियन स्थापित किए जाएंगे जो भारत और पाकिस्तान के नाम से जाने जाएंगे।

 

अंतरिम सरकार(9 सितम्बर 1946)-

मंत्री विभाग
पं. जवाहरलाल नेहरु कार्यकारी परिषद के उपाध्यक्ष, राष्ट्रमंडल तथा विदेशी मामले
डॉ. राजेंद्र प्रसाद खाद्य एवं कृषि
सरदार वल्लभभाई पटेल गृह, सूचना एवं प्रसारण
सरदार बलदेव सिंह रक्षा
सी. राजगोपालाचारी शिक्षा
आसफ अली रेलवे
जॉन मथाई, शरतचंद्र बोस उद्योग एवं नागरिक आपूर्ति
जगजीवन राम, शफात अहमद खां श्रम
सी.एच.भाभा, सैयद अली जहीर बंदरगाह एवं खान

                                                                   

संविधान सभा-

कैबिनेट मिशन योजना के अनुसार जुलाई, 1946 में संविधान सभा के चुनाव संपन्न हुए।

कुल 389 सदस्यों में से प्रांतों के लिए निर्धारित 296 सदस्यों के लिए चुनाव हुए।

इनमें से 292 प्रतिनिधि ब्रिटिश भारत के गवर्नरों के अधीन 11 प्रातों से तथा इनके अतिरिक्त चीफ कमिश्नरों के चार प्रातों अर्थात, दिल्ली, अजमेर-मारवाड़, कुर्ग और ब्रिटिश बलूचिस्तान से एक-एक प्रतिनीति को चुना गया।

संविधान सभा में भारतीय प्रांतों की ओर से सर्वाधिक प्रतिनिधि संयुक्त प्रांत (55) के थे। हैदराबाद रियासत के प्रतिनिधि संविधान सभा में शामिल नहीं हुए। मुस्लिम लीग ने इन चुनावों में भाग नहीं लिया।

सभा के संवैधानिक सलाहकार जाने-माने न्यायाधीश बी.एम. राव थे। जयप्रकाश नारायण तथा तेज बहादुर सप्रू स्वास्थ्य संबंधी कारणों से संविधान सभा में शामिल नहीं हुए।

संविधान सभा का प्रथम अधिवेशन 9 दिसंबर, 1946 को संसद भवन के केंद्रीय कक्ष में संपन्न हुआ। डॉ. सच्चिदानंद सिन्हा को सर्वसम्मति से संविधान सभा का अस्थायी अध्यक्ष चुना गया। इसके पश्चात् 11 दिसंबर, 1946 को डॉ. राजेंद्र प्रसाद संविधान सभा के स्थायी अध्यक्ष चुने गए।

13 दिसंबर, 1946 को पं. जवाहरलाल नेहरु द्वारा उद्देश्य प्रस्ताव प्रस्तुत किया गया।

13 दिसंबर से 19 दिसंबर, 1946 तक इस सभा ने उद्देश्य प्रस्ताव पर कुल 8 दिन गहन विचार-विमर्श किया। इसके बाद 22 जनवरी, 1947 को संविधान सभा के सदस्यों ने खड़े होकर सर्वसम्मति से इसे पास कर दिया।

भारतीय संविधान के प्रथम प्रारुप का संस्करण फरवरी, 1948 में तथा दूसरी अक्टूबर, 1948 में प्रकाशित किया गया।

क्षेत्रीय विधानमंडल पर संविधान सभा प्रथम बार 17 नवंबर, 1947 को मिली तथी जी.वी. मावलंकर को इसका अध्यक्ष चुना गया।

संविधान के प्रारुप पर 114 दिन विचार-विमर्श किया गया तथा इसके तीन वाचन हुए।

प्रथम, 4 फरवरी, 1948

द्वितीय, 15 नवंबर, 1948

तृतीय, 14 नवंबर, 1949

संविधान सभा ने संविधान निर्माण का कार्य 11 अधिवेशनों में किया तथा कुल 165 दिन सभाएं हुई। इस कार्य के लिए 60 देशों के संविधान का अध्यय किया गया।

संविधान की स्वीकृति के बाद संविधान के कुछ अनुच्छेद 26 नवंबर, 1949 के दिन से ही लागू कर दिए गए, जैसे- नागरिकता, निर्वाचन, अंतरिम संसद, अल्पकालिक एवं परवर्ती उपबंध, परंतु शेष संविधान को 26 जनवरी, 1950 को लागू किया गया।

26 नवंबर, 1949 को भारत पूर्ण संप्रभु लोकतांत्रिक गणतंत्र बना।

26 जनवरी, 1950 से भारत एक गणराज्य के रुप में स्थापित  हो गया।

संपूर्ण संविधान के निर्माण पर 63,96,729 रुपये (लगभग 64 लाख)व्यय हुए।

संविधान सभा ही बाद में अंतरिम संसद के रुप में परिणित हो गई तथा 1951-1952 ई. तक प्रथम संसद के गठन के लिए निर्वाचन एवं गठन तक अंतरिम संसद के रुप में कार्य करती रही।

भारतीय संविधान के निर्माण में महान योगदान देने की वजह से डॉ. भीमराव अंबेडकर को भारत के संविधान का पिता एवं आधुनिक मनु कहा जाता है।

 

अन्य संविधानों के निर्माताओं द्वारा संविधान निर्माण में लिया गया समय-

क्र.सं. देश कुल अनुच्छेद कार्य अवधि लिया गया समय
1. संयुक्त राज्य अमेरिका 7 25 मई, 1787 से 19 सितंबर, 1787 चार माह से कम
2. कनाडा 147 19 अक्टूबर, 1864 से मार्च, 1867 लगभग 2 वर्ष 6 माह
3. ऑस्ट्रेलिया 128 मार्च 1891 से 9 जुलाई, 1900 लगभग 9 वर्ष
4. दक्षिण अफ्रीका 153 अक्टूबर 1908 से सितंबर 1909 एक वर्ष

 

संविधान सभा से संबंधित प्रमुख समितियां-

समिति अध्यक्ष
1.प्रारुप समिति डॉ.भीमराव अंबेडकर
2.संघ शक्ति समिति पं. जवाहरलाल नेहरु
3.राज्य वार्ता समिति डॉ. राजेंद्र प्रसाद
4.संघ संविधान समिति पं. जवाहरलाल नेहरु
5.मूल अधिकार और अल्पसंख्यक समिति सरदार वल्लभभाई पटेल
6.संविधान के प्रारुप की निरीक्षण समिति ए.के. एस. अय्यर
7.संचालन समिति डॉ.राजेंद्र प्रसाद
8.कार्य संचालन समिति डॉ. कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी
9.झंडा समिति डॉ.राजेंद्र प्रसाद