भारत में हरित क्रांति Green Revolution in India
हरित क्रांति (Green Revolution) क्या है?
- उन्नत किस्म के बीजों, उर्वरकों, कीटनाशाकों क प्रयोग द्वारा कृषि उत्पादकता में होने वाली वृद्धि के संदर्भ में हरित क्रांति शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम 8 मार्च 1968 में अमेरिकी वैज्ञानिक डॉ. विलियम गैड के द्वारा किया गया।
- अमेरिकी अंतर्राष्ट्रीय विकास एजेंसी भारत में हरित क्रांति का श्रेय नोबेल पुरस्कार से सम्मानित अमेरिकी कृषि वैज्ञानिक डॉ.नॉर्मन ई. बोरलॉग को दिया जाता है।
- डॉ. बोरलॉग, मेक्सिको सरकार तथा रॉकफेलेर फाउंडेशन द्वारा 1966 में गेहूँ का विकास अंतर्राष्ट्रीय गेहूँ व मक्का विकास केन्द्र द्वारा किया गया था।
- भारत में हरित क्रांति के क्षेत्र में डॉ.एम.एस. स्वामीनाथन का योगदान भी अति महत्त्वपूर्ण रहा है, वे भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के डायरेक्टर जनरल के पद पर थे।
- भारत में हरित क्रांति के जनक डॉ.एम.एस. स्वामीनाथन को कहा जाता है एवं विश्व में हरित क्रांति के जनक डॉ. नॉरमन ई बोरलॉग महोदय को कहा जाता है।
- भारत के संदर्भ में हरित क्रांति से अभिप्राय कृषि उत्पादन में हुई उस तीव्र वृद्धि से है, जो ऊँची उपज वाले वीजों एवं रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशों, कृषि यंत्रीकरण, बेहतर सिंचाई प्रणाली एवं नई तकनीकों के फलस्वरुप हुई।
- 1960 के दशक में खाद्यान्न संकट की समस्या के समाधान हेतु 1963 में मेक्सिकों से लाए गए गेहूँ (जैसेः लारमारोजो, सोनोरा-64) की अधिक उपज देने वाले बीजों का प्रयोग किया गया इन किस्मों का भारतीय रुपांतरण कल्याण सोना व सोनालिका थी।
- धान की बैनी (जैपोनिका, ताइचुंग नेटिव-1 तथा IR-8 का भारतीय रुपांतरण नाम जया तथा रत्ना नाम हैं), किस्मों का विकास अंतर्राष्ट्रीय चावल संस्थान फिलीपींस में हुआ था, जिसे पहले की तुलना में प्रति हेक्टेयर कृषि उत्पादन अधिक मात्रा में होना प्रारंभ हो गया। देश को खाद्य उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाने के उद्देश्य को ध्यान में रखकर वर्ष 1966-67 में कृषि क्षेत्र में विकास के लिये नई कृषि रणनीति अपनाई गई।
- इसके अंतर्गत बड़े पैमाने पर अधिक उपज देने वाले उन्नत किस्म के बीजों का प्रयोग आरंभ हुआ।
- भारत में हरित क्रांति की शुरुआत 1966 में खरीफ की फसल से हुई, इसके साथ ही सघन कृषि कार्यक्रमों को अपनाया गया, इसके अतिरिक्त कृषि क्षेत्र में अनुसंधान एवं प्रशिक्षण, लघु सिंचाई कार्यक्रम एवं भूमि संरक्षण जैसे उपाय किये गए।
- दिल्ली स्थित भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद्, लुधियाना, पंजाब कृषि विश्वविद्यालय, उत्तराखण्ड के जी.बी. पंत कृषि विश्वविद्यालय का विशेष योगदान था। इन उपायों के परिणामस्वरुप भारत के पश्चिमोत्तर भागों- हरियाणा, पंजाब, पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गेहूँ और चावल के उत्पादन में तीव्र वृद्धि हुई, इसे ही भारतीय कृषि के क्षेत्र में हरित क्रांति का नाम दिया गया। इसे बीज-उर्वरक क्रांति भी कहा जाता है।
हरित क्रांति के घटक(Component of Green Revolution)
1. | उन्नत किस्म के बीज |
2. | रासायनिक उर्वरक |
3. | रासायनिक कीटनाशक एवं खरपतवार नाशक |
4. | बेहतर सिंचाई प्रणाली |
5. | बेहतर साख सुविधाएँ |
6. | बेहतर भंडारण सुविधाएँ |
7. | बेहतर विषणन एवं वितरण सुविधाएँ |
- भारत में हरित क्रांति का लाभ कुछ ही क्षेत्रों तक सीमित रहा, इससे क्षेत्रीय असंतुलन की बढ़ावा मिला। इसी के साथ हरित क्रांति का सर्वाधिक प्रभाव गेहूँ के उत्पादन पर पड़ा, लेकिन इस अनुपात में अन्य फसलों के उत्पादन में कोई वृद्धि नहीं हुई, इससे कृषि प्रारुप बिगड़ गया। अत्यधिक रासायनिक उर्वरकों एवं कीटनाशकों के प्रयोग से पर्यावरण प्रदूषण में वृद्धि हुई।